Thursday 8 February 2018

कशमकश में जीवन

कुछ एक दिन पहले मुझे खाजूवाला विधानसभा क्षेत्र के नाड़ा गांव जाने का अवसर मिला. में इस क्षेत्र के लोगों का जीवन यापन देख कर विचलित हो गया... सोच रहा था कि सुविधाओं के अभाव में इन लोगों का जीवन कैसे बीत रहा. पहले कि बात अलग थी. अब इस तरह का जीवन व्यतीत करना कहीं ना कहीं जन प्रतिनिधियों कि नाकामीयों को दर्शाता है.. वहां के कुछ लोग यह भी कह रहे थे कि हमें हमारे विधायक सहाब को देखे अरसा बीत गया.. कहा जा रहा था कि पिछले चुनाव में 2013 को यहां आये थे और बड़े बड़े वायदे किये थे जिनके बहकावे में आ कर हम लोगों ने हमारे क्षेत्र से उन्हें बड़ी लीड़ दी थी. चुनाव जीतने के बाद डॉ. सहाब के दर्शन ही दुर्लभ हो गये. और स्थानीय लोगों ने साथ में यह भी कहा कि यदि हमें किसी काम से बात करनी होती है तो पहली बात तो वो हमसे बात भी नहीं कर पाते ऐन केन प्रकार से यदि हमारी बात हो भी जाती है और हम हमारे समस्याओं को उनके समक्ष रखते हैं या रखने का प्रयास करते हैं तो विधायक मोहदय हमारी बात को टाल कर किसी दूसरे व्यक्ति पर डाल देते हैं. मतलब बीच में बीचोलिये और एजेंट प्रोजेक्ट कर रखे... मतलब हमारा हमारे विधायक से सीधा संवाद ही नहीं है...

यह वास्तविकता है हमारे क्षेत्र के हलात बहुत बदतर हैं. हम लोग तो लिख कर हमारा दर्द बयां कर देते हैं. लेकिन उन लोगों पर तरस आता है जो शांत हो कर पिस रहे हैं... जब मेने पूछा कि आप अपने प्रतिनिधियों के खिलाफ कोई एक्शन कियूं नहीं लेते ? हल्की सी मुस्कराहट से जवाब आया अब दिल्ली दूर नहीं. अगर हम लीड दे सकते हैं तो पांच सालों के बाद छिन भी सकते हैं.